साल २०२३ में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार से हो रही है। जिसका समापन २४ अक्टूबर, मंगलवार को नवरात्रि पारण और विजयदशमी के साथ होगा। प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ होगी 14 अक्टूबर रात्रि 11:24 बजे पर और प्रतिपदा तिथि समाप्त होगी 16 अक्टूबर प्रातःकाल 12:32 मिनट पर। घटस्थापना प्रातः काल 06:30 बजे से प्रातकाल 08:47 बजे तक रहेगा। घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त होगा 15 अक्टूबर प्रातःकाल 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक है।
शारदीय नवरात्रि के संपूर्ण तिथि
- 15 अक्टूबर मां शैलपुत्री, प्रतिपदा तिथि,
- 16 अक्टूबर मां ब्रह्मचारिणी, द्वितीया तिथि
- 17 अक्टूबर मां चंद्रघंटा, तृतीया तिथि
- 18 अक्टूबर, मां कुष्मांडा, चतुर्थी तिथि
- 19 अक्टूबर, मां स्कंदमाता ,पंचमी तिथि
- 20 अक्टूबर, मां कात्यायनी ,अष्टमी तिथि
- 31 अक्टूबर, मां कालरात्रि, सप्तमी तिथि
- 22 अक्टूबर, मां महागौरी , दुर्गा अष्टमी
- 23 अक्टूबर महानवमी, नौवा दिन शरद नवरात्रि व्रत पारण।
- 24 अक्टूबर मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, विजयदशमी, दशहरा।
नवरात्रि पूजन विधि 2023 संपूर्ण जानकारी
पहले स्नान करके पूजा के स्थान को गंगा जल के छीटे मारकर शुद्ध करें। फिर पूजा स्थान पर चौकी रखिये। उस पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर अक्षत से नौ कोने बनाए। बीच से शुरू करते हुए बाहर की तरफ बनाये। उसके ऊपर भगवती देवी की प्रतिमा रखे। प्रतिमा के सामने एक जल का कलश रखें। देवी पुराण के अनुसार कलश को ही नौ देवियों का रूप माना जाता है और इसीलिए नवरात्र में कलश की पूजा की जाती है। कलश पर मौली बांधें। उस कलश में थोड़ा गंगाजल डालें। एक सुपारी, हल्दी, चावल और सिक्का डालें। आम के या पान के पत्ते सजाकर कलश पर रखें। फिर एक नारियल लें। उस पर मौली बांधें और फिर उस नारियल को उन पान के पत्तों पर सजाकर रखें।
अब एक घी का अखंड दीपक प्रतिमा के दाएं यानी की राइट साइड पर रखें। इसे भी जलाना नहीं है। पूजा सामग्री और थाली को पूजा के स्थान के पास ही रखें। सबसे पहले आसन ग्रहण करें और आचमन में पहले बाएं हाथ से जल ले और दाएं हाथ में डालें। दोनों हाथों को शुद्ध करें। फिर ओम् दुर्गा देव्यै नमः बोल बोलकर तीन बार जल पिए। इसके बाद फिर से हाथ धो लें। अब अपने आप को तिलक लगाएं। साथ में अपने परिवार वालों को भी टीका लगाएं। अब अखंड घी के दीपक को जला दें। याद रखें कि अखंड दीपक नौ दिन तक बुझना नहीं चाहिए और कलश अपनी जगह से हिलना नहीं चाहिए।
नवरात्रि में संकल्प क्या रखे ?
हाथ में पुष्प और चावल रखें और संकल्प लें। मैं ऐश्वर्य, श्रद्घा, भक्ति से आपकी पूजा अर्चना करने जा रही हूं और मेरी मनोकामना पूरी हो। मेरा घर सुख शांति से भरा रहे। मेरी बस यही कामना। यह बोलकर मां के सामने पुष्प और चावल छोड़ दें। अब फूल से जल लें और जल का छिड़काव प्रतिमा और कलश पर करें। उसके बाद हल्दी कुमकुम से दुर्गा मां की प्रतिमा पर तिलक करें। और कलश पर भी तिलक करें। इसके बाद अक्षत को प्रतिमा के ऊपर छोड़ें और कलश पर भी अर्पित करें। अब एक चुनरी माता की प्रतिमा पर चढ़ाएं। अब कलश पर रखे नारियल पर भी चुन्नी चढ़ाएं। अब कलश पर छोटे फूल अर्पित करें और माता रानी की प्रतिमा को हार पहनाएं। इसके बाद श्रृंगार का सामान माता के चरणों में रख दें और सुहागन महिलाएं माता को श्रृंगार चढ़ाकर अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करें। अब फूल द्वारा माता की प्रतिमा पर और कलश पर इत्र छोड़े। अब अगरबत्ती माता को दिखाएं। घर में बने हुए प्रसाद को माता को दिखाकर चौकी के पास रखे । अब पाँच प्रकार के फल माता रानी को चढ़ाएं।
माता रानी को चढ़ाने वाले फल:
माता रानी को खट्टे फल बिल्कुल नहीं चढ़ाने चाइये । अब नारियल और दक्षिणा माता की प्रतिमा के पास रख दे। अब मिट्टी का छोटा मटका लेकर उसमें मिट्टी डाली और जौ को भी दाल दे । ऊपर से मिट्टी के ऊपर शुद्ध जल डालें और मटकी पर मौली बांधकर माता की प्रतिमा के बाएं तरफ रख दें। अब मटकी पर हल्दी कुमकुम का टीका लगा दें। अब वोही टीका अपनी मांग पर लगा दें। थोड़े से छोटे फूल मटके पर अर्पित करें। इस रिवाज को कुछ लोग खेती बचाना कहते हैं। खेती में पहले नवरात्र से लेकर आखरी नवरात्र तक रोज सुबह स्वच्छ जल डालते हैं। माना जाता है कि खेती जितनी अच्छी होती है माता उतनी प्रसन्न होती है। विसर्जन वाले दिन खेती को लाल चुनरी से ढककर और उसमें कुछ पैसे रखकर विसर्जन करते हैं। अब दोनों हाथों में फूल और अक्षत लेकर दुर्गा माता से प्रार्थना करें कि हमसे इस पूजा विधि में जो कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करें और ओम् दुर्गा देव्यै नमः मंत्र का उच्चारण तीन बार जोर से करते हुए माता के चरणों में फूल और अक्षत छोड़ दें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ और बर्त कैसे करे ?
अब जो महिलाएं चाहती हैं वो दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़ें। अब दुर्गा मां के कपूर और घी का दीपक जलाकर आरती करें। अब अपने परिवार को आरती दें और खुद भी आरती लें। आरती की थाली मां के पास रखदे। एक चम्मच पानी लेकर आरती के ऊपर से घुमाएं और नीचे छोड़ दें। अब अपने परिवार को प्रसाद दें। यदि आपने पहले और आखिरी दिन का व्रत संकल्प लिया है तो आप प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। यदि नौ दिन का व्रत संकल्प लिया है तो प्रसाद व्रत की समाप्ति के बाद ही करें। जिन महिलाओं ने नौ दिन नवरात्रि का व्रत रखने का संकल्प किया है, वह प्रतिदिन माता के नौ रूप की पूजा दिन के हिसाब से करें। व्रत रखने वाली महिलाएं प्रतिदिन फूलों का हार, चुनरी, फूल, अक्षत, प्रसाद, फल और अगरबत्ती माता को फिर से चढ़ाकर आरती करें और यदि हो सके तो दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
नवरात्रि पुरे होने के बाद क्या करे और मातारानी को कैसा चुन्नी चढ़ानी है ?
मातारानी के रूप | चुन्नी |
१. शैलपुत्री | लाल नारंगी,
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२. ब्रह्मचारिणी | पीला |
३. चंद्रघंटा | सफेद
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४. कुष्मांडा | भूरा
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५. स्कन्दमाता | गुलाबी
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६. कात्यायनी | हरा
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७. कालरात्री | आसमानी या फिर ग्रे, |
८. महागौरी | नारंगी
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९. सिद्धिदात्री | मरून या फिर गहरा लाल। |
नवरात्र पूरे होने पर कलश में रखे हुए पानी के छीटें पूरे घर में मारें। ध्यान रहे माता को हर दिन अलग रंग की चुन्नी चढ़ानी है। जो इस प्रकार है।
नवरात्रि में कन्या पूजन कब किया जाता है ?
अपने परिवार की रीत के हिसाब से कन्या पूजन अष्टमी या नवमी को किया जाता है। कंजक या कन्या पूजन नवरात्रि के व्रत का एक बहुत अहम हिस्सा माना जाता है। इस पूजन के लिए १० साल तक की नौ लड़कियों की जरूरत होती है। इसमें महिलाएं मां जगदंबा के सभी नौ रूपों को याद करते हुए घर में आई सभी लड़कियों के पैर धोती हैं। उनके हाथ में मौली बांधकर माथे पर बिंदी लगाती हैं। उनको हलवा, पूरी और चने खाने के लिए देकर कुछ तोहफे और रुपए भी देती हैं। जय माता दी कहकर लड़कियों के पैर छूकर उनके जाने के बाद खुद और अपने परिवार के साथ प्रसाद और भोजन उसी जगह पर करती हैं, जहां लड़कियों को भोजन कराती है ।
FAQ
Question: २०२३ में नवरत्रि कब है ?
Answer: २०२३ में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार से हो रही है। जिसका समापन २४ अक्टूबर, मंगलवार को नवरात्रि पारण और विजयदशमी के साथ होगा।
धन्यवाद ।